Kavitansh

शिक्षक दिवस

मंच नमन

कविता का शीर्षक - 'शिक्षक'


ठोंक ठोंक जब कुम्भ बनाये, गीली माटी वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला


पहली सीख मैय्या से सीखे, दूजी पिता सिखाता

तीजी सीख सिखन को, शिष्य गुरू शरण में जाता

गुरु शरण मे जाए, पिये सुर ज्ञान की हाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


गुरूजी गुण की खान है, सीखो कुछ अनमोल

बढ़े देश का मान भी, बात कहुँ मैं तोल

बात कहुँ मैं तोल, गाँठ सुलझाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


आगे आगे गुरु चलें, पद चिन्हों पर दास

अमृत कलश की आस है, गुरु भुझावें प्यास

गुरु भुझावें प्यास, हृदय का तिमिर मिटाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


एकलव्य सा शिष्य बने, गुरु हों द्रोणाचार्य

हस्थ अँगूठा काट कर, दिया दक्षिणा भार

दिया दक्षिणा भार, सिंह हृदय मतवाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


गुरु मान बस दीजिये, चाह न कोइ अपार

चरण वंदना किजिये, उनके पैर पखार

उनके पैर पखार, पंथ दिखलाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


हमने गुरुजन से सीखा निज जीवन का सार

लक्ष्य को पाकर इस धरनी पर किया स्वप्न साकार

किया स्वप्न साकार, स्वप्न दिखलाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


शिष्य मान करता तभी, जब योग्य गुरु वो पाये

सुलझाए गुत्थियाँ सभी, सहज सरल मन माहे

सहज सरल मन माहे, खोले किस्मत का ताला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


गुरु शिष्य का इस जग में, जन्म जन्म का नाता

शिष्य बिना ना गुरु बने, कैसे रचें इतिहासा

कैसे रचें इतिहासा, मन हर्षाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


हो चहुँमुखी विकसित देश, देश को भव्य बनायें

अपने कृत्यों से गुरु का मान भढ़ायें

गुरु का मान भढ़ायें, कल्याण करने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


५ सितंबर है शिक्षक दिवस, है ये पर्व हमारा

श्री राधाकृष्णन का जन्मोत्सव प्यारा

जन्मोत्सव प्यारा, कृषी वो हल चलाने वाला

नरम गात पर रेखा खींचे, मन बने मतवाला ।।


रचियता

श्रीमती शोभना श्रीवास्तव

3/09/2021

जन्माष्टमी

मंच नमन

कविता का शीर्षक - 'मुरलीधर'


अधर धरी मुरली श्याम यूँ मुस्काए

घुंघराले केश लिये स्वप्न में यूँ आए ||


तिरछी सी चितवन थी, मुखमंडल सुशोभित

बिखरी चाँदनी थी, छबि मनमोहक

सुधबुध मै खो बैठी, प्रभु मन भाये

घुंघराले केश .........


राधा दीवनी हुई, मीरा भई जोगन

गिरधारी रूप तेरा देख कर मनमोहन

नंद का दुलारा, यशोदा वारी जाये

घुंघराले केश .........


कहता है मुझसे वो प्रीत का ही भूखा है

प्रेम सबको बाँटता है, फिर भी मन सूखा है

माखन मिश्री कोई प्रेम से खिलाये, आता ज़रूर है गर प्यार से बुलाये

घुंघराले केश .........


श्री राधाकृष्ण में ही दुनिया समायी है

झूला झुलाने सारी दुनिया ही तो आयी है

झूले में कृष्णा मन ही मन इठलाये

घुंघराले केश .........


दाऊ संग जोड़ी है, कृष्ण कन्हैया की

बहुत मार पड़ती है , दोनो को मैया की

एक को पकड़ो, तो दूजा भाग जाये

घुंघराले केश .........


रचियता

श्रीमती शोभना श्रीवास्तव

25/08/2021

पितरों का सम्मान

मंच नमन

कविता का शीर्षक - 'पितरों का सम्मान'


अंत समय जब हमें छोड़ कर, वो बैकुंठ को चले गए!

आंखें नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


पितरों की श्रेणी मे आए, आर्शीवाद दिया सबको

जो अपने पितरों को ध्याय, मन से मान करें उनको

झड़ी लगाए आशिषों की, पितृ जो दुनियां छोड़ गए

आंखे नम होती स्मृति मैं, हमें अकेला छोड़ गए!


साल में पंद्रह दिन ही उनके, मृत्यु लोक मे आने के

भेंट करे सबसे मिल जाएं, फिर दिन वापस जाने के

श्राद करे तर्पण दे उनको तज दुनियां से चले गए

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


चेहरे बार बार आते हैं, सामने अपने पितरों के

कभी ये भी थे जीवित, शामिल अपने जीवन मैं

आज नहिं हैं साथ तो क्या, कुछ पल तो संग मैं बिता गए

आंखे नम होती स्मृति मैं, हमें अकेला छोड़ गए!


उनकी यादों में मन अपना, भटका भटका रहता है

न्योते हुए ब्राह्मणों मैं भी, लगता अपना बैठा है

श्रृद्धा सुमन प्यार के चाहे, पूर्ण विरासत छोड़ गए

आंखे नम होती स्मृति मैं, हमें अकेला छोड़ गए!


तस्वीरों में भोग लगाएं, द्विज बुलाएं उन्हें खिलाएं

फिर भी काग रूप में आकर, आशिषों का ढेर लगाएं

जीते जी न मान दिया, अब पूजें प्राण गए

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


पितृ प्रसन्न, तो फूले फले वंश वृक्ष हमारा

पीढी दर पीढी कुल दीपक, फैलाए उज्यारा

कोई चला गया, कोई जाए, कोई द्वार खड़े

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


कुश आसन पर बैठकर, कुश उंगली में पोऐ

भोग लगा तर्पण करे, पितृ पानी कर जोऐं

काग कागोरी खाए के, वृक्ष उपर चढ गए

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


जन्म जन्म का खेल है, मैं जानूं न कोई

पितृ काम ही में आतें हैं, जब कोई संकट होई

कवच बने, आगे खड़े, विपदा के दिन गए

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


मात पिता किसी का भाई

मां हो या, मां की परछाई

जातें हैं सब उसी डगर पर, प्रियजन जो छोड़ गए

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


नमन करू मैं हाथ जोड़ कर, पितरों को प्रणाम

भूल चूक को क्षमा करें, हम सब हैं नादान

कोटि कोटि नमन स्वीकारों, रक्खों हृदय तले

आंखे नम होती स्मृति में, हमें अकेला छोड़ गए!


रचियता

श्रीमती शोभना श्रीवास्तव

16/04/2022

तरु की छाया

मंच नमन

कविता का शीर्षक - 'तरु की छाया'


जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव है

जान बचाते इंसानों की, भरते सारे घाव है।


१. दिन भर मेहनत कर किसान, छांव में इसकी आते

रूखी सूखी रोटी खाकर, चैन से वह सो जाते

डालें डालें हवा में झूमे, नाचे सारा गांव है

जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव है।


२. इस छांव में रेन बसेरा, करते थक कर राही

कुछ फल खा कर आगे बढ़ते, मंजिल के सिपाही

गाना गाते चलते जाते, प्रेम भरा भाव है

जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव हैं


३.तरु की शरणमें घर है उनका, शाक शाक में बसेरा

पंछी की तो रात वहीं है, वहीं पर उनका सवेरा

छत्रछाया तरु की पाकर, तर जाए उनकी नाव है

जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव है


४. सुबह-सुबह देते तरु हमको, जीवन दायिनी श्वास

जब लहराते तरु, बारिश की बनती आस

इसलिए करते नमन इन्हें, छूते इनके पाव है

जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव है


५. मातृछाया सी तरु छाया है, नमन करें हम तरु को

ममता का लहराता आंचल, सहलाता है हमको

प्यार है हमको इस तरु छाया से, बैठे बड़े ही चाव है

जीवन को चलाते तरुवर, देते ठंडी छांव है

जान बचाते इंसानों की, भरते सारे घाव हैं


रचियता

श्रीमती शोभना श्रीवास्तव

23/04/2022

MORE COMING SOON..!!!!